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कविता

बात और भाव राख में

जीत नाराइन


बात और भाव राख में जैसे कूडा़ किए हैं
आग राख को छोड़कर धन्‍यवाद देगी

राख में हम कहाँ तुम्‍हारे पाँव पडे़ं
कहाँ थी खबर इतनी कि तुम्‍हारी जरूरत होगी

शब्‍दों को रचकर, तुम्‍हें बुलवाना पड़ता है।
यादों के फंदो ने टाँग लिया है हमको
राख में बात और भाव खोजना है।

 


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